मन मोरा छलकत जाय रे सखी

मन मोरा छलकत जाय रे सखी, हाय रे सखी।
मन मोरा छलकत जाय रे सखी।
कौन दिशा में ढूँढ़ौं पी को,
कछु न सुधि पराय रे सखी।
मन मोरा छलकत जाय रे सखी।

पी बिन सूना आँगन-वाँगन,
पी बिन मोरे, मैं बैरागन।
पी बिन जीवन, एक उदासी,
पी बिन मोरे, मैं दासी-वासी।
कुछ न मन को भाए रे सखी,
मन मोरा छलकत जाय रे सखी, हाय रे सखी।
मन मोरा छलकत जाय रे सखी।

पी बिन सावन, जैसे ज्वाला,
पी बिन फीकी, हर मधुशाला,
पी बिन चाय ऐसी लागे,
जैसे बाती बिन धागे-वागे।
पी की याद सताए रे सखी
मन मोरा छलकत जाय रे सखी, हाय रे सखी।
मन मोरा छलकत जाय रे सखी।

देस-बिदेस में जो मैं ढूँढन भागी,
हर सूरतिया मोरे पी-सी लागी।
जो भी पाया, पी-सा पाया,
हर है हर में अनंत समाया।
पग-पग ठहरत जाए रे सखी,
मन मोरा छलकत जाय रे सखी, हाय रे सखी।
मन मोरा छलकत जाय रे सखी।

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